Wednesday, April 18, 2018

Krishna Ka Vilaap

कृष्ण का विलाप

कृष्ण को अपनी दुकान पर देख,
वस्त्र व्यापारी बोला
हे माधव, स्वागत है
बोलो चाहिए कौन सा चोला
फिर चले हो किस अबला की
लाज बचाने
साड़ी या सलवार,
बोलो तुम्हें क्या हैं बढ़ाने

सुन व्यापारी की बात,
रोये कृष्ण फफक कर
बंशी हाथ से छूटा,
'सुदर्शन' भी गिरा धरती पर
बोले, हे मनुज
अब ये कार्य तनिक ना मुझे सुहाता है
युवतियों के पुकार के अतिरिक्त,
बच्चियों की चीत्कार भी अब मुझे बुलाता है

मानव से मानवता,
अब बहुत दूर हुई है
कुकृत्य के आगे,
अब आयु की सीमा भी मजबूर हुई है
'निर्भया' के बाद सोचा था कि,
अब तो समाज आत्म मंथन करेगा
दुःख और पश्चाताप की अग्नि में,
मन के दुर्विचारों का दहन करेगा
पर तुम्हीं बताओ कि,
दुराचार की घटनाएं क्या थम गयीं हैं?
अरे मन के घनघोर तिमिर,
'कैंडल मार्च' की रौशनी से कभी क्या कम हुईं हैं?

मोर्चा निकालने से पहले,
मन में सोये 'राम' को जगाना होगा
नारी सम्मान की हकदार हैं,
ये घर के बेटों को बताना होगा
स्वयं के चरित्र को अगर स्वच्छ रखें,
तो समाज स्वतः ही स्वच्छ हो जाएगा
अन्यथा  'सड़क' और 'सोशल मीडिया' पर मचे शोर में,
मूल प्रश्न पुनः कहीं खो जाएगा

ये कहते हुए कृष्ण,
वस्त्र ले अंतर्धान हुए
गीता का उपदेश देने वाले ने
फिर से हमें ज्ञान दिए