गरीब का बच्चा
दिन में परिश्रम या याचना से,
दो जून की रोटी जोड़ लेता है
रात में धरती को मान बिछावन,
आसमान ओढ़ लेता है।
हवा माँ बनकर,
जिसके बदन को थपथपाती है।
जुगनू भी जिसके कानों में
लोड़ी गुनगुनाती है।
अर्थ, सामर्थ्य और आश्रय से वंचित,
जीवन में मिले दुखों का अर्जित,
सकल अभावों की पीड़ा में भी,
जिसका ज़मीर अभी तक सच्चा है।
ये जिसकी कहानी है,
वो एक गरीब का बच्चा है।
बाप बंधुआ मजदूरी कर,
शाम में दारु पी कर आता है।
दिन भर मालिक की गालियाँ सुन,
भट्ठे पर कुछ पल जी कर आता है।
मां रसोई के खाली कनस्तरों में
रोज़ उम्मीदें ढूंढती है।
औरों को खिला, बचा-खुचा खुद खाकर,
जीवन से झूझती है।
पूस की रात है,
कड़ाके की ठंड है।
कंपकपाती सर्दी और
लाचार गरीबी की जंग है।
मां के मैले आँचल में
खुद को छिपा सोया ये मलंग है।
एक गरीब के बच्चे को हरा ना पाने पर
कुदरत भी दंग है।
सावन की बरसात और
बाढ़ से मचा हाहाकार है।
मां कही जाने वाली नदियों ने भी
लिया महाकाल का अवतार है।
चहुँ-ओर महामारी, दुःख, विलाप
और चीत्कार है।
पर घनघोर बारिश में खेलते
इस बच्चे की खिलखिलाहट, प्रकृति को ललकार है।
झेठ की दुपहरी और
घरों में दुबकी मानवता है।
लू के थपेड़ों से परेशान
सारी जनता है।
सूनी सड़कों और सूनी गलियों को देख
दंभ में कुदरत हँसता है।
पर ऐसे मौसम में भी इस बच्चे को
नंग-धडंग धूल में लोटते देख, वो भी चिढ़ता है।
ना शिकवा जहान से, ना शिकायत भगवान् से,
ना वेद-कुरान का झगडा, ना ईर्ष्या धनवान से,
भुखमरी और अभावों के अलावा
जिसके जीवन में कुछ नहीं बचा है।
ये जिसकी कहानी है,
वो एक गरीब का बच्चा है।
दिन में परिश्रम या याचना से,
दो जून की रोटी जोड़ लेता है
रात में धरती को मान बिछावन,
आसमान ओढ़ लेता है।
हवा माँ बनकर,
जिसके बदन को थपथपाती है।
जुगनू भी जिसके कानों में
लोड़ी गुनगुनाती है।
अर्थ, सामर्थ्य और आश्रय से वंचित,
जीवन में मिले दुखों का अर्जित,
सकल अभावों की पीड़ा में भी,
जिसका ज़मीर अभी तक सच्चा है।
ये जिसकी कहानी है,
वो एक गरीब का बच्चा है।
बाप बंधुआ मजदूरी कर,
शाम में दारु पी कर आता है।
दिन भर मालिक की गालियाँ सुन,
भट्ठे पर कुछ पल जी कर आता है।
मां रसोई के खाली कनस्तरों में
रोज़ उम्मीदें ढूंढती है।
औरों को खिला, बचा-खुचा खुद खाकर,
जीवन से झूझती है।
पूस की रात है,
कड़ाके की ठंड है।
कंपकपाती सर्दी और
लाचार गरीबी की जंग है।
मां के मैले आँचल में
खुद को छिपा सोया ये मलंग है।
एक गरीब के बच्चे को हरा ना पाने पर
कुदरत भी दंग है।
सावन की बरसात और
बाढ़ से मचा हाहाकार है।
मां कही जाने वाली नदियों ने भी
लिया महाकाल का अवतार है।
चहुँ-ओर महामारी, दुःख, विलाप
और चीत्कार है।
पर घनघोर बारिश में खेलते
इस बच्चे की खिलखिलाहट, प्रकृति को ललकार है।
झेठ की दुपहरी और
घरों में दुबकी मानवता है।
लू के थपेड़ों से परेशान
सारी जनता है।
सूनी सड़कों और सूनी गलियों को देख
दंभ में कुदरत हँसता है।
पर ऐसे मौसम में भी इस बच्चे को
नंग-धडंग धूल में लोटते देख, वो भी चिढ़ता है।
ना शिकवा जहान से, ना शिकायत भगवान् से,
ना वेद-कुरान का झगडा, ना ईर्ष्या धनवान से,
भुखमरी और अभावों के अलावा
जिसके जीवन में कुछ नहीं बचा है।
ये जिसकी कहानी है,
वो एक गरीब का बच्चा है।
Gareeb ka bachcha
din mein parishram ya yachna se
do june ki roti jod leta hai
raat mein dharti ko maan bichhawan
aasmaan odh leta hai
hawa maan bankar
jiske badan ko thapthapati hai
jugnu bhi jiske kaano mein
lodi gungunati hai
arth, saamarthya aur aashraya se vanchit
jeevan mein mile dukho ka arjit
sakal abhaavon ki peeda mein bhi
jiska zameer abhi tak sachcha hai
ye jiski kahani hai
wo ek gareeb ka bachcha hai
baap bandhua mazdoori kar
sham mein daru pee kar aata hai
din bhar maalik ki gaaliyan sun
bhatte par kuchh pal jee kar aata hai
maan rasoi ke khali kanastaron mein
roz ummidein dhhondhti hai
auro ko khila, bacha-khucha khud khakar
jeevan se jhojhti hai
poos ki raat hai
kadake ki thand hai
kanpkapati sardi aur
gareebi ki jung hai
maan ke maile aanchal mein
khud ko chhipa soya ye malang hai
ek gareeb ke bachche ko hara na paane par
kudrat bhi dang hai
saawan ki barasaat aur
baadh se macha hahakaar hai
maan kahi jaane wali nadiyon ne bhi
liya mahakaal ka avtaar hai
chahun-or mahamaari, dukh, vilaap
aur chtkaar hai
par ghanghor baarish mein khelte
is bachche ki khilkhilahat, prakriti ko lalkaar hai
jheth ki dupahri aur
gharon mein dubki maanavta hai
lu ke thapedon se pareshan
saari janta hai
sooni sadkon aur sooni galiyon ko dekh
dambh mein kudrat hansta hai
par aise mausam mein bhi is bachche ko
nang-dhadang dhool mein lotte dekhkar wo chidhta hai
na shikwa jahaan se, na shikayat bhagwaan se
na ved-kuraan ka jhagda, na irshya dhanwaan se
bhookhmari aur abhawon ke alawa
jiske jeevan mein kuchh nahi bacha hai
ye jiski kahani hai
wo ek gareeb ka bachcha hai
Good one boss.
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